गांव के लोग तेज़ी से शहर की ओर पलायन कर रहे हैं। इसकी वजह गांवों में सुविधाएं न होना, बेरोज़गारी और जातिवाद हो सकती है। देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत लखनऊ के बेंती गाँव को गोद लिया था।
अब इस बात को चार साल बीत चुके हैं। गाँव मे दो बस्तियां हैं। एक हिस्से में ब्राह्मण रहते हैं और बचा हुआ इलाका दलितों को दिया है।
गृहमंत्री राजनाथ सिंह के कथित आदर्श ग्राम ‘बेंती’ की हालत देख जनकवि अदम गोंडवी की कविता की एक पंक्ति याद आती है, जिसमें वो कहते हैं ‘तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है…’
बेंती गांव भयंकर असुविधा, बेरोजगारी, जातिवाद… आदि से जूझ रहा है। पयालन की मजबूरी इस गांव को भी सूना कर रही है। ‘बोलता हिंदुस्तान’ के संवाददाता से बात करते हुए दलित बस्ती के एक निवासी ने कहा, “यहां हरिजनों का विकास नहीं हो रहा। ये ब्राह्मणों की राजनीति है। बस घुमावदार बाते की जाती हैं। तनाव पैदा किया जाता है।”
गाँव मे एक तरफा विकास हो रहा है। ब्राह्मणों के घर शौचालय हैं। उनके पास पक्का मकान है। दलित बस्ती की हालत उतनी अच्छी नहीं। न ही कोई शौचालय है न ही पक्का मकान। नालियां गंदी पड़ी रहती हैं। साफाई कर्मचारी भी बस्ती में नहीं आते।
बस्ती में रहने वाली एक महिला ने बताया कि, “गाँव में बत्ती (बिजली) अपनी मर्ज़ी से आती है। नालियां खुली हैं और गंदी भी। गांव के लोग प्रधान आवास भी चाहते हैं। प्रधानमंत्री की अन्य योजनाओं के बावजूद लोग झोंपड़ी में रहते हैं। गाँव में पक्का मकान नहीं बन रहे।
गाँव के लोगों ने बताया कि उन्होंने पक्का मकान बनवाने की बहुत कोशिशें की। खाता भी खुल गया पर सरकार द्वारा कोई कदम नहीं उठाया गया।
दलित बस्ती की महिला ने बताया कि गाँव को वहां के पंडित नियंत्रित करता है। उन्होंने कहा कि, “पंडित ने ही गाँव के प्रधान को बनाया है। जो पंडित कह देता है वही होता है। अधिकारी मुआयना करने आते हैं पर कुछ नहीं होता। वही होता है जो पंडित कहता है”
इन लोगों के पास राशन कार्ड भी नहीं है। गाँव के लोगों का कहना है कि जब से राजनाथ सिंह ने गाँव को गोद लिया है तब से गाँव मे भेदभाव बढ़ा है।
एक आदमी ने बताया कि गांव मे आरसीसी नहीं बदली गई। नालियां साफ़ नहीं कराई जातीं। सफाई कर्मचारी नहीं आते। बस्ती के लोग अपने हाथ से नाली साफ़ करते हैं। गाँव मे मीटिंग होती है पर इसकी सूचना दलितों को नहीं दी जाती। गाँव में दलित बस्ती का विकास रुका हुआ है। सड़कें खराब हैं। बस्ती में नई सड़कें नहीं बनतीं। बल्कि बनी हुई सड़कें बंद कर दी जाती हैं।
दलित बस्ती से निकलने वाली एक रोड को पंडित ने बंद करा दिया था। उसका कारण यह था कि वो सड़क ब्राह्मणों के घर के पास से होकर गुज़रती है। वे नहीं चाहते दलित उनके आस-पास भी आएं।
बस्ती की एक और निवासी ने कहा कि, “जब वोट मांगने का समय आता है ये लोग हमारे पैर छूते हैं। लेकिन जब हमारा समय आता है ये सब कुछ भूल जाते हैं। हमारे पास राशन कार्ड भी नहीं हैं”
गाँव में पिछले 60 साल तक बंधुआ मज़दूर की प्रथा चलती रही। पड़ताल करने पर पता चला की प्रधान गांव में नहीं थे। प्रधान के चाचा ने इस बात की पुष्टि की कि गाँव मे लड़कियों के लिए दसवीं के बाद स्कूल नहीं है। उन्होंने दो-तीन बार राजनाथ सिंह से इस बारे मे शिकायत की परन्तु कोई जवाब अब तक तो नहीं आया है।
दलित बस्ती पर पूछे गए सवालों पर उन्होंने कहा, “दलितों की समस्याएँ कभी ख़त्म नहीं होती। उन्हें खज़ाना चाहिए। उनके पास सिलेंडर हैं। हम अभी भी चूल्हे पर रोटी बनाते हैं”
राजनाथ सिंह ने बेंती गाँव को गोद तो लिया है पर उसे पाला नहीं। गाँव दो भागों मे बंटा हुआ है। ब्राह्मणों के क्षेत्र का विकास प्रगति पर है। दलित बस्ती आज भी 60 साल पीछे चल रही है। देश के प्रधानमंत्री गांधीवाद की बाते करते हैं। स्वच्छ भारत अभियान पर करोड़ों रूपए बहा देते हैं। लेकिन उन्हीं के प्रिय मंत्री 5000 की आबादी वाले बेंती गाँव को नज़रअंदाज़ करते हैं। उनका विकास ब्राह्मणों तक ही सीमित रहता है।
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